अब जिम्मेदारी लेने की राजनीति का दौर खत्म हो गया है और उसकी जगह श्रेय लेने की राजनीति का दौर आ गया है। नेता किसी विफलता की जिम्मेदारी नहीं लेते। लेकिन अगर बारिश बेहतर हो जाए तो उसका भी श्रेय लेने आ जाते हैं। अगर उसी बारिश से शहर में जलभराव हो जाए तो इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं होगा। सोचिए, एक समय था जब लोकतंत्र की बुनियादी शर्त सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत हुआ करता था। भारत ने ब्रिटेन के वेस्टमिंस्टर मॉडल पर लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया है। वहां 1963 में क्रिस्टीन कीलर कांड हुआ था। ब्रिटिश सरकार के मंत्री लॉर्ड जॉन प्रोफुमो का क्रिस्टीन कीलर नाम की एक मॉडल के साथ अफेयर था, जिससे जुड़ी कुछ तस्वीरें मीडिया में आई थीं। इस विवाद के बाद न सिर्फ मंत्री बल्कि प्रधानमंत्री हेरोल्ड मैकमिलन की सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था। लेकिन अब ब्रिटेन में भी सामूहिक जिम्मेदारी नहीं है और भारत में तो हमने आजादी के बाद से ही इस सिद्धांत को नहीं अपनाया है।
इसके बावजूद सरकारें जिम्मेदारी लेती थीं। सरकारों की विफलता की चर्चा होती थी। आम आदमी सरकार की नाकामियों पर गुस्सा और आक्रोशित हो जाता था और नेता नैतिक कारणों से नहीं तो आंदोलन के कारण इस्तीफा दे देते थे। लेकिन अब सरकारें कोई जिम्मेदारी नहीं लेती हैं और किसी न किसी आधार पर भारतीय समाज इतना बंटा हुआ है कि सबसे अक्षम सरकार के समर्थन में भी हजारों, लाखों लोग हर समय खड़े रहते हैं। दूसरी बात यह है कि सभी पार्टियां मुफ्त चीजें और सेवाएं बांटकर चुनाव जीत रही हैं। इसलिए वे कोई और काम नहीं करती हैं और लोग भी उन्हें किसी चीज के लिए जिम्मेदार नहीं मानते हैं। दिल्ली में हर महीने दो सौ यूनिट बिजली और 21 हजार लीटर पानी मुफ्त है। साथ ही महिलाओं को डीटीसी बसों में मुफ्त यात्रा मिल रही है। इसलिए दिल्ली सरकार को अब कुछ करने की जरूरत नहीं है। उसे साफ पानी और साफ हवा उपलब्ध कराने की भी चिंता करने की जरूरत नहीं है।
कल्पना कीजिए, अक्टूबर के महीने में दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) तीन सौ से ऊपर है। लोगों का दम घुट रहा है। अस्पतालों में सांस की बीमारियों के मरीजों की संख्या बढ़ रही है लेकिन दिल्ली सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है। पिछले साल की सर्दियों में भी यही स्थिति थी और जब पूछा गया कि इस साल ऐसा न हो इसके लिए सरकार ने क्या किया तो दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री और दूसरे मंत्री पड़ोसी राज्यों की भाजपा सरकारों को दोषी ठहरा रहे हैं। वे किसी भी पहलू से खुद को जिम्मेदार नहीं मान रहे हैं और अपनी पंजाब सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं। अब सारी जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों की है, जहां भाजपा सत्ता में है। इससे पहले जब तक पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं बनी थी, तब तक पराली जलाने और प्रदूषण बढ़ाने के लिए पंजाब सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जाता था। लेकिन अब पिछले तीन सालों से पंजाब सरकार भी सारी जिम्मेदारी से बरी हो गई है।
जरा सोचिए, यह कितनी बेशर्मी है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी ने कहा कि दिल्ली में यमुना का पानी गंदा है क्योंकि भाजपा सरकारें यमुना में गंदा पानी छोड़ रही हैं। सवाल यह है कि अगर हरियाणा सरकार गंदा पानी छोड़ रही है तो हरियाणा में यमुना की गंदगी का मुद्दा क्यों नहीं है या हरियाणा में यमुना के पानी में झाग क्यों नहीं आ रहा है? तो क्या यह माना जाए कि हरियाणा सरकार अपने इलाके में यमुना को साफ रखती है, लेकिन दिल्ली में प्रवेश करते ही उसका पानी प्रदूषित कर देती है? इसमें कोई संदेह नहीं है कि जब उत्तर प्रदेश से हिंडन बैराज में पानी छोड़ा जाता है, तो उसमें चीनी मिलों और दूसरे उद्योगों की गंदगी भी होती है, लेकिन दिल्ली में यमुना के मृत होने का सिर्फ यही एक कारण नहीं है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि सीवरेज के जरिए दिल्ली में यमुना के पानी में आने वाले सीवेज की मात्रा तय मानक से 1300 गुना ज्यादा हो गई है। सोचिए, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट इसे कितना साफ कर सकते हैं? विशेषज्ञों ने दिल्ली में यमुना को मृत घोषित कर दिया है, यानी यहां के पानी में कोई जलीय जीव जीवित नहीं रह सकता। यमुना पहले भी गंदी थी, लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी के 10 साल के शासन में यमुना मृत हो गई है। इसके बावजूद सरकार के लोग जिम्मेदारी लेने की बजाय पड़ोसी राज्यों पर दोष मढ़ रहे हैं। इसी तरह अक्टूबर के महीने में लोगों का दम घुट रहा है, लेकिन दिल्ली सरकार ऐसे काम कर रही है, जैसे इसमें उसकी कोई जिम्मेदारी ही नहीं है। मुख्यमंत्री ने बेशर्मी से कहा कि पड़ोसी राज्यों से आने वाली गाड़ियों के धुएं से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ा है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा के किसानों द्वारा पराली जलाने से प्रदूषण बढ़ा है। पंजाब में उनकी ही पार्टी की सरकार को क्लीन चिट दे दी गई है। इससे पहले कोरोना महामारी के दौरान जब दिल्ली के अस्पतालों में लोगों को जगह नहीं मिल रही थी और लोग ऑक्सीजन की कमी से मर रहे थे, तब आम आदमी पार्टी की सरकार ने कहा था कि पड़ोसी राज्यों के मरीज अस्पतालों में भर रहे हैं। तो इस सरकार का मूल मंत्र यही है.
कि किसी भी बात की जिम्मेदारी न लें और अधिकारों के लिए 24 घंटे उप राज्यपाल और केंद्र सरकार से लड़ते रहें।
ऐसा नहीं है कि जिम्मेदारी न लेने की राजनीति सिर्फ आम आदमी पार्टी ही कर रही है। केंद्र सरकार भी इसी तरह काम कर रही है। वह भी हर तरह की जवाबदेही से मुक्त हो गई है। इस मामले में घटनाओं के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं लेकिन ट्रेन दुर्घटनाओं का उदाहरण सबसे ताजा है। अब जब भी कहीं कोई ट्रेन दुर्घटना होती है तो तुरंत कहा जाता है कि इसके पीछे कोई साजिश है। पहले जब कोई दुर्घटना होती थी तो मृतकों और घायलों की सूचना आती थी, मुआवजे की खबर आती थी, ट्रेनों के रद्द होने या रूट बदलने की सूचना आती थी और जवाबदेही तय होती थी। लेकिन अब सबसे पहली खबर यही आती है कि ट्रेन को पटरी से उतारने या टक्कर मारने की साजिश थी। जब से नए रेल मंत्री आए हैं और उनके रील बनाने को लेकर कुछ आलोचना हुई है, तब से हर दुर्घटना में साजिश का पहलू जुड़ गया है। अब एक के बाद एक विमानों में बम रखे जाने की धमकियां आ रही हैं। लेकिन इसे भी भारत के विमानन क्षेत्र को कमजोर करने की विदेशी साजिश बताया जा रहा है। चूंकि जनता ने भी मुफ्त सुविधाओं के बदले में वोट दिया है, इसलिए उन्हें भी सरकारों को जवाबदेह ठहराने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।