मुक्तक …………
(१)
बरसा रहे हैं आग तानाशाह विश्व के,
दुबके हुए हैं शासक कमजोर विश्व के।
अस्तित्व ही नहीं बचेगा शासितों का जब,
किस पर करेंगे शासन तानाशाह विश्व के।
(२)
नाई भी वही होंगे भिस्ती भी वही होंगे,
मजदूर वही होंगे मिस्त्री भी वही होंगे।
क्या-क्या करेंगे चंद तानाशाह धरा पर,
इनकी वजह से विश्व के हालात कैसे होंगे?
(३)
खाना यही पकायेंगे पानी यही भरेंगे,
जीने के लिए खुद ही सब काम यह करेंगे।
सोना पड़ेगा भूखे जब अनाज नहीं उगेगा,
जब शक्ति क्षीण होगी बेमौत यह मरेंगे।
(४)
कवि दे रहा हिदायत विध्वंश की न सोचें,
बन करके बाज चिड़ियों के पर कभी न नोचें।
करती न फर्क गोली गौरैया – बाज में,
कैसे बचेंगे प्राण खैरियत वो अपनी सोचें।
