Budget 2024: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार को लेकर कई घोषणाएं की गईं। बड़ी-बड़ी घोषणाओं और योजनाओं के बावजूद, इनकी सफलता संदिग्ध है। इस बजट का गहराई से विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह बजट इन तीनों महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता।
शिक्षा का अनदेखा पहलू
बजट में शिक्षा के क्षेत्र के लिए आवंटित राशि को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गईं, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह राशि राज्य के मौजूदा शिक्षा ढांचे को सुधारने के लिए अपर्याप्त है। “नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2024” के तहत डिजिटलीकरण और बुनियादी ढांचे के सुधार की बातें की गईं, लेकिन जमीनी स्तर पर प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए कोई ठोस योजना नहीं दिखती। ग्रामीण इलाकों के स्कूलों की हालत सुधारने के लिए किए गए वादे केवल कागजों तक सीमित रहेंगे, अगर इनके लिए पर्याप्त फंड और क्रियान्वयन की रणनीति नहीं बनाई गई।
शिक्षकों की कमी, गुणवत्ता शिक्षा की अनुपलब्धता, और ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की बदहाल स्थिति को इस बजट में नजरअंदाज किया गया है। इसके अलावा, उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए आवश्यक संसाधनों का अभाव इस बजट की कमजोरी को दर्शाता है। यदि सरकार शिक्षा क्षेत्र में वास्तविक सुधार चाहती है, तो उसे इन मूलभूत समस्याओं का समाधान करना होगा।
स्वास्थ्य क्षेत्र की अनदेखी
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट में आवंटित राशि भी उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। “स्वास्थ्य भारत मिशन” के तहत नई स्वास्थ्य परियोजनाओं की घोषणा की गई है, लेकिन मौजूदा अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त फंड नहीं दिया गया। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, जिससे इस योजना की सफलता पर संदेह पैदा होता है।
आवश्यक चिकित्सा उपकरणों की कमी, डॉक्टरों और नर्सों की अपर्याप्त संख्या, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की खराब स्थिति इस बजट की नाकामी को दर्शाती है। इसके अलावा, महामारी के बाद स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती के लिए आवश्यक कदम उठाने में भी यह बजट असफल रहा है। जनता को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए सरकार को इन क्षेत्रों में अधिक निवेश करना होगा।
रोजगार सृजन में कमी
रोजगार सृजन के नाम पर बजट में जो योजनाएं पेश की गई हैं, वे मात्र कागजी साबित हो रही हैं। “राष्ट्रीय रोजगार सृजन योजना” के तहत युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों का वादा किया गया है, लेकिन रोजगार के वास्तविक अवसर पैदा करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। एमएसएमई क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के वादे भी दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं हैं, क्योंकि इस क्षेत्र के उद्यमियों को वास्तविक वित्तीय सहायता और संसाधनों की आवश्यकता है, जो इस बजट में पूरी नहीं होती।

युवाओं को रोजगार देने के लिए आवश्यक नीतियों और संसाधनों का अभाव इस बजट की एक और बड़ी कमी है। सरकारी नौकरियों में कमी और निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की अनिश्चितता से यह स्पष्ट है कि बजट रोजगार सृजन के मोर्चे पर असफल साबित हो रहा है। रोजगार सृजन के लिए प्रभावी और ठोस नीतियां आवश्यक हैं, जो इस बजट में नजर नहीं आतीं।
निष्कर्ष
संक्षेप में, यह बजट शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के मुद्दों पर निराशाजनक साबित हुआ है। बड़े-बड़े वादों और घोषणाओं के बावजूद, जमीनी हकीकत यह है कि यह बजट इन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने में असमर्थ है। शिक्षा क्षेत्र की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और रोजगार सृजन के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
सरकार को चाहिए कि वह इन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार के लिए अपनी नीतियों और योजनाओं पर पुनर्विचार करे और वास्तविक सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाए, ताकि जनता को इसका वास्तविक लाभ मिल सके। अगर सरकार इन क्षेत्रों में सुधार नहीं करती है, तो यह बजट सिर्फ कागजी घोषणाओं और वादों तक सीमित रह जाएगा, जिससे जनता की उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। जनता को उम्मीद थी कि इस बजट से उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव आएगा, लेकिन यह बजट उन उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।