फतेहपुर चौरासी (उन्नाव)।
भागवत कथा आज के जीवन में हमें मानवता, सदाचार, सामाजिक सद्भाव, मर्यादा,कर्तव्यपरायणता, नैतिकता, ईमानदारी का संदेश देती है। भागवत सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, उतने वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।
फतेहपुर चौरासी क्षेत्र के अंतर्गत टांडासातन गांव में वीरेन्द्र सिंह द्वारा आयोजि भागवत कथा में नैमिषशारण तीर्थ स्थल शारदानंद आश्रम से आए आचार्य सुधीर कुमार शास्त्री द्वारा उक्त बाते कही गई। उन्होनेश्रोताओं से बताया कि देखी सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए। पानी परात सो हाथ छुओ नहीं नैनन के जल से पग धोए। भगवान श्री कृष्ण द्वारिकापुरी के स्वामी हैं, तो सुदामा प्रजा के प्रतिनिधि हैं। कृष्ण भगवान हैं तो सुदामा एक भक्त हैं, फिर भी वे सांदीपनि की पाठशाला में गुरु भाई और बाल सखा हैं। यह मित्रता कृष्ण जीवनभर निभाते हैं। अपने मित्र के स्वागत के लिए स्वयं सिंहासन छोड़कर नंगे पैर दौड़े चले आते हैं। अपने मित्र को गले लगाकर अपने आसन पर बिठाकर सम्मान देते हैं। जीवन यात्रा में मित्रता का आधार धन-संपत्ति , वैभव नहीं होता है । सुदामा-श्रीकृष्ण की मित्रता आदर्श प्रेम स्मरण कराती है। जब भी हम आदर्श मित्रता की बात करते हैं तो सुदामा और परमात्मा श्री कृष्ण का प्रेम स्मरण हो आता है। उन्होंने बताया कि सुदामा के लिए धन की कोई कमी नहीं थी। सुदामा के पास विद्वता थी और धनार्जन तो सुदामा उससे भी कर सकते थे। मगर सुदामा पेट के लिए नहीं, बल्कि आत्मा के लिए कर्म कर रहे थे। वे आत्म कल्याण को प्राथमिकता देते थे। भागवत जैसा ग्रंथ एक दरिद्र को प्रसन्नात्मा जितेंद्रिय शब्द से अलंकृत नहीं कर सकता। जिसे भागवत ही परमशांत कहती हो उसे कौन दरिद्र घोषित कर सकता है। पत्नी के कहने पर सुदामा का द्वारिका आगमन और प्रभु श्रीकृष्ण द्वारा सुदामा के सत्कार पर व्यास जी ने कहा कि यह व्यक्ति का नहीं व्यक्तित्व का सत्कार है। यह चित की नहीं चरित्र की पूजा है। सुदामा की निष्ठा और सुदामा के त्याग का सम्मान है। कथा वाचक ने बताया कि मित्रता में बदले की भावना का स्थान नहीं होना चाहिए।उन्होंने कहा कि एक ब्राह्मण, भगवान श्री कृष्ण के परम मित्र थे। वे बड़े ज्ञानी, विषयों से विरक्त, शांतचित्त तथा जितेन्द्रिय थे। अगर सच्चा मित्र है तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए। वहीं सुदामा श्रीकृष्ण की चरित्र की झांकी देख सभी भाव विभोर होकर कृतार्थ हुए साथ ही फूल होली देख सब हर्षित हुए । वीरेंद्र सिंह, अमरेंद्र सिंह, विमला सिंह, सज्जन सिंह, अरुण सिंह, अनमोल, प्रधान खुशीराम यादव, राजू सिंह, सुधीर सिंह, कपिल सिंह साहित भारी संख्या में श्रोता उपस्थित रहें।