हसनगंज तहसील के ग्राम खैराबाद के प्राचीन बजरंगबली मंदिर प्रांगण में आयोजित राम कथा के द्वितीय दिवस की कथा में प्रसिद्ध कथावक्ता प. नवीन कुमार मिश्र के मुखरविंदु से राजा परीक्षित और कलयुग आगमन की कथा प्रसंग का सुंदर वाचन किया गया।
जिसमे नवीन कुमार मिश्र ने कथा वर्णन करते हुए बताया कि” एक दिन जब परीक्षित दिग्विजय करने निकले थे। उन्होंने एक उज्ज्वल सांड़ देखा,जिसके तीन पैर टूट गये थे। केवल एक ही पैर शेष था। पास ही एक गाय रोती हुई उदास खड़ी थी। एक काले रंग का राक्षस राजाओं की भाँति मुकुट पहने, हाथ में डंडा लिये गाय और बैल को पीट रहा था। यह जानने पर कि गौ पृथ्वी देवी हैं और वृषभ साक्षात धर्म हैं तथा वह कलियुग रूपी राक्षस बनकर उन्हें प्रताड़ना दे रहा है। परीक्षित ने उस राक्षस को मारने के लिये तलवार खींच ली। राक्षस ने अपना मुकुट उतार दिया और वह परीक्षित के पैरों पर गिर पड़ा। महाराज ने कहा- “कलि! तुम मेरे राज्य में मत रहो। तुम जहाँ रहते हो, वहाँ असत्य, दम्भ, छल-कपट आदि अधर्म रहते हैं।” कलि ने प्रार्थना की- “आप तो चक्रवती सम्राट हैं; अतः मैं कहाँ रहूं, यह आप ही मुझे बता दें। मैं कभी आपकी आज्ञा नहीं तोडूंगा।” परीक्षित ने कलि को रहने के लिये जुआ, शराब, स्त्री, हिंसा और स्वर्ण-ये पांच स्थान बता दिये। ये ही पांचों अधर्मरूप कलि के निवास हैं। इनसे प्रत्येक कल्याणकामी को बचना चाहिये।
शृंगी ऋषि का श्राप
एक दिन आखेट करते हुए परीक्षित वन में भटक गये। भूख और प्यास से व्याकुल वे एक ऋषि के आश्रम में पहुँचे। ऋषि उस समय ध्यानस्थ थे। राजा ने उनसे जल मांगा, पुकारा; पर ऋषि को कुछ पता नहीं लगा। इसी समय कलि ने राजा पर अपना प्रभाव बनाया। उन्हें लगा कि जान-बूझकर ये मुनि मेरा अपमान करते हैं। पास में ही एक मरा हुआ सर्प पड़ा था। उन्होंने उसे धनुष से उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया, यह परीक्षा करने के लिये कि ऋषि ध्यानस्थ हैं भी या नहीं, और फिर वे राजधानी लौट गये। बालकों के साथ खेलते हुए उन ऋषि के तेजस्वी पुत्र शृंगी ने जब यह समाचार पाया, तब शाप दे दिया- “इस दुष्ट राजा को आज के सातवें दिन तक्षक काट लेगा।” घर पहुँचने पर परीक्षित को स्मरण आया कि- “मुझसे आज बहुत बड़ा अपराध हो गया।” वे पश्चात्ताप कर ही रहे थे, इतने में शाप की बात का उन्हें पता लगा। इससे राजा को बहुत दुःख हुआ। अपने पुत्र जनमेजय को राज्य देकर वे गंगातट पर जा बैठे। सात दिनों तक उन्होंने निर्जल व्रत का निश्चय किया। उनके पास उस समय बहुत-से ऋषि-मुनि आये। परीक्षित ने कहा- “ऋषिगण! मुझे शाप मिला, यह तो मुझ पर भगवान की कृपा ही हुई है। मैं विषयभोगों में आसक्त हो रहा था, दयामय भगवान ने शाप के बहाने मुझे उनसे अलग कर दिया। अब आप मुझे भगवान का पावन चरित सुनाइये।” उसी समय वहाँ घूमते हुए श्रीशुकदेव जी पहुँच गये। परीक्षित ने उनका पूजन किया। फिर श्री शुकदेव ने उन्हें भागवत पुराण की कथा सुनाई।
मन्दिर प्रांगण में आए सैकड़ों श्रोता गण मंत्रमुग्ध कथा प्रसंग का पावन वर्णन सुनकर आनंदित हुए। कथा में श्री कृष्ण राधा झांकी और भक्त का भगवान से प्रार्थना का संगीतमय प्रस्तुति भी की गई।
अर्जून तिवारी उन्नाव