परम श्रद्धेय गुरुदेव। हर जगह पूजा पाठ हो रही है, धर्म ग्रंथ पढ़े जा रहे हैं, लोग तीर्थ यात्राएं कर रहे हैं, लाखों गुरु करोड़ों शिष्य बना रहे हैं, कथाओं की अमृत धारा बह रही है, फिर भी लोगों पर भगवत कृपा क्यों नहीं हो रही है? उनके जीवन और चिंतन में परिवर्तन क्यों नहीं हो रहा है? लोगों के काम, क्रोध, मद, लोभ में वृद्धि क्यों हो रही है?
प्रिय शिष्य अर्जुन। आपकी चिंता जायज है। ऐसा इसलिए नही हो रहा है कि इस कलयुग में हम यंत्रों पर निर्भर हो गए हैं, बल्कि इससे मानवीय क्रियाएं भी विकृत हो गई हैं। मनुष्य जो भी कर रहा है, यंत्र की तरह कर रहा है। उसके हर धार्मिक कृत्य में सिर्फ प्रदर्शन है, परंपराओं का निर्वाह है, पुरातन विधियों का अनुपालन है। अधिक से अधिक शिष्य बनाने और धार्मिक कथाओं में भीड़ बढ़ाने की प्रतियोगिता है, जबकि उनके जीवन में उतना जप, तप नही है कि वे बड़ी संख्या में लोगों का हृदय परिवर्तित कर दें। इस कारण जब तक वे कथा सुनते हैं, या अपने सदगुरु के संपर्क में रहते हैं, तब तक उनका हृदय द्रवित होता है, लेकिन जैसे ही वहां से दूर जाते हैं, उन पर फिर यंत्र प्रभावी हो जाता है। यही हाल तीर्थाटन का है, लोग तीर्थ या धाम पर परिवर्तित होने के लिए नही जाते। उसके बहाने घूमने और मौज मस्ती करने जाते हैं, और यहां तक कि तीर्थों, धामों पर भी उनकी सोच और क्रियाओं में परिवर्तन नहीं होता, थोड़ी देर के लिए, जितनी देर वे दर्शन करते हैं, उनकी वृत्तियां मानवीय बनती हैं। इस कारण मनुष्य के काम, क्रोध, मद, लोभ में कमी नही आती, उनके हृदय का प्रसार नही होता, उनके हृदय में गंगा प्रवाहित नही होती। जिससे मन की कलुषता ज्यों की त्यों बनी रहती है।
प्रिय शिष्य अर्जुन। मानव यंत्र नही है, इस कारण उसके जप, तप के तरीके एक जैसे नहीं हो सकते। जीवन में जब श्रम ही नहीं रह गया, तो भाव भूमि कैसे उत्पन्न होगी। आज कल मनुष्य की भाव भूमि बंजर होती जा रही है, उसे उपजाऊ बनाने के लिए जो कुछ वे अपना रहे हैं, वे क्षणिक लाभ पहुंचा रही हैं और अंततः भाव भूमि को और बंजर बना रही है, इस कारण उनकी धारक क्षमता में नित्य प्रति पल ह्रास हो रहा है। जिससे काम, क्रोध, मद, लोभ में वृद्धि हो रही है और मानव, उसका परिवार, समाज, राष्ट्र से शांति और आनंद गायब हो गए हैं, केवल अनाचार, दुराचार, ईर्ष्या, द्वेष आदि ही बचे हैं। इसी कारण उनके विचारों, उनके आचरण में कोई परिवर्तन नहीं दिखाई पड़ रहा है। उन पर भगवत कृपा भी नही हो रही है।
ॐ जय जननी, जय जगत जननी
सदगुरु आचार्य योगसाधनानंद जी महाराज
(प्राकृतिक साधना सेवा आश्रम)