जन्माष्टमी (Janmashtami) का उत्सव है। हमारी संस्कृति के सबसे चमकते सितारे कृष्ण का जन्मदिन। हवाओं में अभी से ही बंशी की धुन तैरने लगी है। कृष्ण को सोचें तो उनकी कई छवियां हमारे मन पर एक साथ अंकित हो जाती हैं – एक नटखट बच्चा, एक चंचल और पराक्रमी किशोर, एक समर्पित शिष्य, एक आत्मीय मित्र,एक अद्भुत बांसुरी-वादक, एक उत्कट प्रेमी, एक मानवीय शासक, एक प्रचंड योद्धा, एक मौलिक विचारक, एक महान योगी, एक दूरदर्शी कूटनीतिज्ञ, एक चतुर रणनीतिकार और एक विलक्षण दार्शनिक। अपने समय की परंपराओं और लीक से हटकर चलनेवाला ऐसा महामानव जिसने अपने कालखंड को इशारों पर नचाया। त्रेतायुगीन राम अपनी तमाम करुणा, प्रेम और मानवीयता के बावज़ूद अपने समय की परंपराओं और राजकीय मर्यादाओं के पार नहीं जा सके। द्वापर के कृष्ण ने अपने समय के धार्मिक, नैतिक और सामाजिक मूल्यों का बार-बार अतिक्रमण भी किया और अपनी स्थापनाओं को मान्यता भी दिलाई। उन्होंने शांति की भूमिका भी लिखी और युद्ध की पटकथा भी। निर्माण की परिकल्पना भी है उनमें और विनाश की योजना भी।पत्नियों की भीड़ भी और प्रेम का एक एकांत कोना भी। अथाह मोह भी और असीमित वैराग्य भी। जिसे हम उनकी लीला कहते हैं , वह वस्तुतः जीवन के समग्र स्वीकार का उत्सव है।
गोकुल के चरवाहे से भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व तक की कृष्ण की जीवन-यात्रा युगों-युगों से हमें रोमांचित और भावविभोर करती रही है। देश की संस्कृति के महानायकों के बीच अकेले उन्हें ‘संपूर्ण पुरूष’ का दर्ज़ा प्राप्त है। जनमानस में गहराई तक धंसे कृष्ण एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हे जीते जी दिव्य पुरुष का आदर मिला और कालांतर में भगवान विष्णु का अवतार घोषित किया गया। यह बहस निरर्थक है कि वे हमारी तरह मानव थे या ईश्वर के अंश अथवा अवतार। ईश्वर हमारा स्रष्टा है तो हम सब ईश्वर के ही अंश या अवतार हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कृष्ण ने अपना ईश्वरत्व पहचान लिया था और हम अपना वास्तविक स्वरुप भूलकर अंधेरे में भटक रहे हैं।
अपने अनोखे, अलबेले कृष्ण के जन्मदिन की देशवासियों को बधाई !
……. लेखक- ध्रुव गुप्त
पेंटिंग Sumitra Ahlawat