फतेहपुर चौरासी(उन्नाव)।
जीव में जब अभिमान आता है तो भगवान उनसे दूर हो जाते है, लेकिन भगवान को न पाकर जब वही जीव विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं। अपनी शरण में ले कर दर्शन देते है।वही रास जीव का शिव से मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है।
उक्त बातें क्षेत्र के ग्राम दरौली स्थित ठाकुरद्वारा में यजमान पुत्तनलाल तिवारी द्वारा आयोजित भागवत कथा में शक्ति पीठ माता भुवनेश्वरी मंदिर के पीठाधीश्वर नीरज स्वरूप ब्रम्हचारी ने कही।भागवत कथा व्यास द्वारा आज छठे दिन भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की कथा का भक्तों को श्रवण कराया। उन्होने कहा कि श्रीकृष्ण को भी इस बात का पता चल चुका था कि विदर्भ नरेश भीष्म की पुत्री रुकमणी परम रूपवती व परम सुलक्षणा है। भीष्म का बड़ा पुत्र राजकुमार रुक्मी भगवान श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। बहन रुकमणी का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था। उधर शिशुपाल भी भगवान कृष्ण से द्वेष रखता था।
रुकमणी को जब इस बात का पता लगते ही अपना निश्चय प्रकट करने के लिए एक ब्राहृाण को द्वारिका श्रीकृष्ण के पास भेजा व संदेश दिया कि हे नंद-नंदन मैने आपको ही पति रूप में वरण किया है। मैं आपको छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं कर सकती। रुकमणी द्वारा भेजे गए पत्र को पढ़कर श्री कृष्ण रुक्मणी से विवाह करने के लिए गिरजा मंदिर पहुंच गए वहां से रुक्मिणी का हरण करके वापस चलने लगे तभी रुक्मणी का भाई रुक्मी ने श्री कृष्ण को रास्ते में रोक कर युद्ध करने लगा। प्रभु रुक्मी को पराजित कर द्वारिका पहुंच विधि अनुसार रुकमणी से ब्याह किया। रुकमणी व भगवान कृष्ण की विवाह की कथा सुन श्रोता मंत्रमुग्ध हुए।कथा के दौरान आयोजकों द्वारा प्रस्तुत कराई गई श्रीकृष्ण एवं रुक्मिणी के विवाह की सुन्दर झांकी ने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया।
….रिपोर्ट– अनिल कुमार