लखनऊ: देश के हालात आज कल कदम कदम पर सवालात के थपेड़ो के बीच गूजरे कल का हिसाब मांग रहे हैं।समय की दरिया ने रास्ता बदला तो वर्तमान की रेत में पुरातन इतिहास दिखने लगा! कहीं खुशी है तो कहीं गम! कहीं मुस्कराहट है तो कहीं किसी की आंखें हो रही है नमः! समय का रेत वक्त के तूफान में उड़ रहा है! जहां कल दुरूह स्थान था आज वहां चहल पहल है।कहीं खन्डहर है तो कहीं सदियों से बिलुप्त मिल रहा शहर है?।माजी के दर्द का अहसास आज भी हो रहा है! आस्था पर कुठाराघात के साथ ही राज सत्ता के दम्भ में दी गई चोट का ईलाज शुरु हो गया है।दर्द पुराना है आसानी से ठीक नहीं होगा हर कोई जानता है! लेकिन हकीम की काबिलीयत पर लोगों को भरोसा है?।क्यों की अब तक कोई शिकायत नहीं कहीं नहीं हुआ धोखा है?बदलाव बहती हवा में गजब की कशिश है?कहीं बिचारो की भरपूर वर्षात हो रही है तो कहीं जबरदस्त सियासी तपिश है। इन्सानियत में आस्था रखने वाले कहीं मजहबी ब्यवस्था पर उंगली उठा रहे हैं! कहीं धर्म के मर्म को जाने बगैर बवाल कर रहे हैं।तमाम मुद्दे तलास कर कदम कदम पर सवाल कर रहे है? आजकल मजहब धर्म की ब्याख्या करने वालों में होड़ मची है! लोग अपनी अपनी सोच के मुताबिक अपनी आस्था में बदलाव कर रहे है। इस डपोरशंखी समाज में गहरा घाव कर रहे हैं,?।कल शाम टीबी सो के एक डिबेट के दौरान शाहील व समीर नाम के दो मुस्लिम युवक जो मजहब से नाता तोड चुके है उनको मजहबी मौलानाओं से सवाल पूछते देखकर हैरानी भी हुई आश्चर्य भी हुआ।समीर वह शाहील के आसमानी किताब के भीतर से निकाल कर जो प्रश्न पूछ जा रहे थे उसका जबाब कोई मौलाना नहीं दे पा रहा था!सवाल के ज़बाब में केवल यह कहकर टाल रहे थे एक भटके हुए जवान है। एक तबलीगी जमात में 18साल तक रहने के बाद इस्लाम धर्म त्याग दिया ? दुसरा शाहील कट्टर मुसलमान के साथ धर्म प्रचारक का काम करने के बाद आसमानी किताब से अपनी आस्था हटाते हुते मजहबी उन्मादी आस्था का त्याग कर दिया?उसने इन्सानियत का रास्ता अख्तियार कर लिया।एनडीटीवी पर रात को डिबेट रोज से हटकर चल रहा था।इन दोनों नौजवानों को मौलाना भटके हुए नौजवान बता रहे थे! लेकिनआतंकवादियों को आजादी के लिये जंग लड़ने वाला सैनिक! गजब की सोच है।जिधर देखिए मोच ही मोच है। हालांकि की समीर और शाहील अभी किसी धर्म को स्वीकार नहीं किया है लेकिन मजहबी कट्टरता का पोल खोल रहे हैं?।इस्लाम छोड़कर एक्स मुस्लिम अपने को लिख रहे है।समय का खेल देखिए असम्भव भी सम्भव हो रहा है। परिवर्तन चक्र मन्थर गति अपनी समय की धूरी पर सदियों से चल रहा है!बहुत कुछ देखा बहुत कुछ देख रहा है।धर्म परिवर्तन का खेल तो सदियों से चला आ रहा है!कुछ लालच में बदल गये! कुछ अज्ञानता में निकल गये! कुछ दबाव में डर से बदल गये! मगर वर्तमान सदी में लब जेहाद जैसा घिनौना खेल चल रहा है।स्वेक्षा से कोई भी किसी भी धर्म में अपनी आस्था रख सकता है! इस देश में इसकी खुली छूट है!आज कल उसी खेल के दो खिलाड़ी समीर और शाहील जाहिल समाज के कुछ लोगों की आंखो की किर कीरी बन गये है।तमाम लोग अपनी आस्था में ब्यवस्था के हिसाब से परिवर्तन कर रहे हैं लेकिन चर्चा तो उनकी ही होती है तो लीक से हटकर चलने का माद्दा रखते है जिस तरह शमीर और शाहील ने कट्टर समाज से अलग होकर सच की ब्याख्या इन्सानियत के दायरे में कर रहे है।।वर्तमान पुरातन इतिहास को खंगाल रहा है?अपने खोए अतीत को पाने के लिए कृत संकल्पित दिख रहा है। ऐसे में कट्टर वादिता भरे समाज का त्याग कर इन्सानियत के राह पर चलने का संकल्प लेने वाले समीर व शाहील को कोटिश: बधाई अभिनन्दन बन्दन है।हम बदलेंगे जग बदलेगा!कट्टर वाद का बिरोध बहुत जरूरी है! चाहे किसी धर्म मजहब का सवाल हो!
इसके लिये जागरूक लोगों को आगे शाहील वह समीर के तरह आना ही होगा! वर्ना यह सभ्य समाज सक्रमित होकर बरबाद हो जायेगा!
सम्हल कर चलना हम भी जानते हैं? मगर ठोकर उसी पत्थर से लगा जिसे हम मानते है?
……. आसिफ खान (प्रदेश महामंत्री)राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत