कविता
जेल का कैदी हूँ मैं,बताओ सजा कब होगी।
मेरी मासूमियत देखने में बताओ रजा कब होगी।
कब से ये लोहे की सलाखे पकड़ा हुआ हूँ,मेरी हाजिरी कब होगी।
जेल का कैदी हूँ मैं, बताओ मेरी सजा कब होगी।
कोई दरबारी आया नहीं अब तलक,लगता है सुबह हुई नहीं अब तक
बड़े सालों से तैयार हूँ मैं, मेरे चेहरे की खाले बताओ कब खुले आसमां के नाम होगी।
ज़ब सब चाले नाकाम होगी क्या तब होगी?
जेल का कैदी हूँ मैं, बताओ सजा कब होगी।
सुबह से शाम,शाम से कल, कल से बरसों बीत गये
इतने दिन बिन सजा रुका हूँ मै,फैसले की सुबह कब होगी।
उम्र अब ढलने वाली है,जिंदगी भी जवाब दे रही है
फैसले की जुबां कब होगी।
जेल का कैदी हूँ मैं, बताओ सजा कब होगी।
मेरी मासूमियत देखने में बताओ रजा कब होगी।
कब से ये लोहे की सलाखे पकड़ा हूँ,मेरी हाजिरी कब होगी।
