Diwali 2024: इस बार दीवाली की तिथि को लेकर काफी असमंजस की स्थिति है। आम लोगों के बीच ही नहीं, धर्मगुरुओं, ज्योतिषियों और त्योहारों की तिथियां बताने वाले विशेषज्ञों के बीच भी यह चर्चा का विषय है। हर साल दीवाली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है, लेकिन इस बार 31 अक्टूबर और 1 नवंबर को लेकर असमंजस की स्थिति है। दिवाली की परंपरा रात में पूजा करने की है और इस बार दोनों तिथियों को लेकर लोगों में असमंजस बढ़ता जा रहा है।
दीवाली को लेकर असमंजस क्यों?
हिंदू त्योहारों की तिथियां अंग्रेजी कैलेंडर पर आधारित नहीं होती हैं। हिंदू कैलेंडर रात 12:00 बजे से रात 12:00 बजे के समय चक्र को नहीं मानता है। हमारा संवत्सर चैत्र माह से शुरू होता है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल में पड़ता है। सूर्य का समय स्थिर रहता है, वहीं चंद्रमा की स्थिति मौसम और पृथ्वी से दूरी के अनुसार बदलती रहती है अगर आज सुबह पंचमी तिथि थी, तो इसका मतलब है कि उस समय चंद्रमा की स्थिति पंचमी के अनुरूप थी। तिथि का निर्धारण चंद्रमा के आधार पर होता है और हमें यह देखना होता है कि सूर्योदय के समय कौन सी तिथि थी।
ज्योतिषियों के अनुसार दीवाली कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। हर तिथि 19 घंटे से लेकर 26 घंटे तक की हो सकती है। जब हम इसे अंग्रेजी तिथि से मिलाने की कोशिश करते हैं तो यह मुश्किल हो जाता है क्योंकि अंग्रेजी कैलेंडर घंटे, मिनट और सेकंड के आधार पर चलता है, जबकि पंचांग घटी, पल और विपल पर आधारित होता है। इसीलिए इस बार दिवाली की सही तिथि को लेकर असमंजस की स्थिति है।
क्या दीवाली 31 अक्टूबर को होगी?
दीवाली और जन्माष्टमी दोनों ही रात में मनाए जाने वाले त्योहार हैं। जिस तरह भगवान राम रात में अयोध्या लौटे थे और श्रीकृष्ण का जन्म भी रात में हुआ था, उसी तरह दिवाली भी अमावस्या की रात को मनाई जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार दीवाली के लिए अमावस्या तिथि महत्वपूर्ण होती है। इस वर्ष अमावस्या तिथि 1 नवंबर को न होकर 31 अक्टूबर को पड़ रही है। यदि अमावस्या न हो तो दीवाली मनाना संभव नहीं है, क्योंकि यह अमावस्या का पर्व है। इसलिए 1 नवंबर की रात्रि को अमावस्या न होने से उस दिन दीवाली नहीं मनाई जा सकती। ज्योतिषाचार्य के अनुसार अंग्रेजी कैलेंडर में काल गणना मध्य रात्रि 12:00 बजे से शुरू होती है, जबकि हिंदू पंचांग में घटी, पल और विपल की गणना सूर्योदय से शुरू होती है। अंग्रेजी समय और तिथियों की गणना में इस अंतर के कारण भ्रम पैदा हो रहा है कि दो मुहूर्त हैं। जबकि वास्तव में मुहूर्त एक ही है और पर्व भी एक ही है।