साल था 2016 उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले का एक छोटा-सा गाँव बक्शा वहीं रहती थी काजल, एक दलित परिवार की होनहार बेटी,उसका सपना था पढ़-लिखकर कुछ बनना, कुछ ऐसा करना जिससे माँ-बाप को लगे कि उनकी बेटी किसी से कम नहीं।
घर की हालत बेहद साधारण पिता शरदानंद खेतों में मजदूरी करते थे। दिन भर धूप में जलते, तब जाकर घर की थाली में दाल रोटी आती। लेकिन बेटी की पढ़ाई के लिए उन्होंने कभी हार नहीं मानी, कहते थे “बेटी अगर आगे बढ़ेगी, तो घर भी बदलेगा।”
काजल ने भी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी, दसवीं बोर्ड में उसने 86.3 प्रतिशत अंक हासिल किए, लेकिन सबसे बड़ा पल तब आया जब अखिलेश यादव की सरकार की तरफ़ से उसे एक फ्री लैपटॉप मिला।
उस दिन जब स्कूल में उसका नाम पुकारा गया और हाथ में चमचमाता लैपटॉप आया, तो उसकी आँखों में खुशी नहीं, भरोसे के आँसू थे, जैसे किसी ने उसके सपनों को पहली बार मान्यता दी हो और जब वो लैपटॉप लेकर घर पहुंची, तो उसके बाबूजी चुपचाप उसे देखते रहे। कुछ बोल नहीं पाए, बस देर तक उसकी पीठ सहलाते रहे।
कहते हैं कुछ चीज़ें शब्दों से नहीं, आँखों से कही जाती हैं।
लैपटॉप से क्या बदला?
लैपटॉप उस समय सिर्फ एक मशीन नहीं था,वो एक दरवाज़ा था, नई दुनिया की तरफ़ काजल ने उस लैपटॉप से खुद टाइपिंग सीखी, इंटरनेट से पढ़ाई देखी और धीरे-धीरे उसमें आगे बढ़ने का विश्वास आ गया। काजल जब बीए कर रही थी, तब उससे पूछा गया था और तब वो कहती है “अगर वो लैपटॉप नहीं होता, तो शायद आज मैं ये सपने भी न देख पाती।”
काजल का छोटा भाई भी अब उसी लैपटॉप से पढ़ाई करता है।
और वहीं पास के मोहल्ले में एक अंकल रहते हैं, जिनके बच्चे भी अब अच्छे कॉलेज में पढ़ रहे हैं। वो अकसर कहते हैं,
“काश उस समय समाजवादी सरकार हमारे बच्चों को भी सीधे लैपटॉप दे पाती, हमें तो खरीदना पड़ा। लेकिन जो मिला, उसी से हमारे बच्चे आगे बढ़े।”
एक योजना जिसने लाखों को छुआ
2012 से 2015 तक, अखिलेश सरकार ने करीब 15 लाख लैपटॉप बांटे। किसी का नाम नहीं देखा, कोई जाति नहीं पूछी, बस मेहनत देखी और सम्मान दिया। बहुत से बच्चों को उस समय पहली बार लगा कि सरकार सिर्फ चुनावी वादा नहीं, ज़िंदगी में भागीदार भी बन सकती है।
और आज…?
आज जब लोग कहते हैं “वो लैपटॉप योजना बेकार थी”, तो काजल जैसे बच्चे चुपचाप मुस्कुरा देते हैं। क्योंकि उन्हें पता है, उसी लैपटॉप ने उन्हें वह बनने दिया जो वे बनना चाहते थे।
काजल की कहानी ये बताती है,कि जब सरकार हाथ पकड़ती है, तो सपने सच हो सकते हैं और यह सिर्फ एक योजना नहीं थी, ये उस पीढ़ी की उम्मीद थी,जो अब उड़ना जान गई है।
– रवीश यादव (लेखक)