हज़ार मसले घर में खड़े हो गए
जब मां बूढ़ी और बच्चे बड़े हो गए
हर बात जो पे ज़िद करते थे
उनको बरसों मां से लड़े हो गए
पीज़ा बर्गर फास्ट फूड ही खाते हैं अब
रसोई से गायब पकोड़े दही बड़े हो गए
मम्मी मम्मी कह कर लिपट जाते थे जो
मिलने पे अब बस मुस्कुरा के खड़े हो गए
मां सुलझाती थी जिनकी हर उलझन
उनके लिए ज़रूरी अब दोस्तों के मशवरे हो गए
अपने आप में ही सिमटा रहता है बेटा
मुद्दत मां को सर पे हाथ धरे हो गए
आओ मां बैठो ना पास मेरे
बेटे को अरसा ऐसे कहे हो गए
सन्नाटा सा पसरा रहता है हरदम
नाराज़ घर से कहकहे हो गए
साथ साथ खाते थे हँसते बोलते बतियाते थे
बेटे की सूरत देखने वास्ते मां के रतजगे हो गए
बातों में तकल्लुफ होता है अब
फासले इस कदर दरमियां हो गए
अब रोज ही लड़खड़ते कदमों से आते हैं घर
जब से बच्चे अपने पावों पे खड़े हो गए
प्रज्ञा पाण्डे (मनु) वापी गुजरात