आईना हैं हकीकत दिखाते हैं हम।
अपना कर्तव्य बेहतर निभाते हैं हम।
मुंह बनाते हैं दर्शक हमें देखकर।
शिकवा करते हैं उनको चिढ़ाते हैं हम।
तोप तलवार बम से न लड़ते कभी।
लेखनी सिर्फ अपनी चलाते हैं हम।
जाग जायें जो सोये हुए हैं कभी।
गीत ग़ज़लों के जरिये जगाते हैं हम।
दाद दें लोग दौलत यही चाहिए।
बज़्म में झूमकर उनकी गाते हैं हम।
रोते अंदर ही अंदर न आंसू बहें।
शामयीनों को तब हंसा पाते हैं हम।
शायरी का सलीका न आया हमें।
लोग कहते हैं उम्दा सुनाते हैं हम।
देश-दुनिया की रखते खबर ही नहीं।
बात इल्म- ओ- हुनर की बताते हैं हम।
“चन्द्र” इल्म-ओ-अदब के तलबगार हैं।
हौले – हौले तुम्हें गुदगुदाते हैं हम।
लेखक- डॉ चन्द्रभान “चन्द्र”
504, न्यू कल्याणी देवी, सिविल लाइन्स, उन्नाव-209801 (यू०पी०)