उन्नाव: सिद्ध पीठ और पौराणिक स्थलों में प्रमुख बक्सर चंडिका देवी स्थल की अपनी विशेष मान्यता है। यहां आने वाले भक्तों को माँ चंद्रिका और अंबिका कभी निराशा नही करती उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। रायबरेली-उन्नाव बॉर्डर पर गंगा नदी के तट पर स्थित प्राचीन मंदिर अपनी अलग ही छटा बिखेराता है।
माता के मन्दिर का है अति प्राचीन इतिहास
सिद्धि पीठ माँ चंडिका देवी धाम का पुराणों मे भी वर्णन हुआ है। पुराण के अनुसार यही पर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ व समाधि वैश्य को मां दुर्गा के महात्म्य का वर्णन सुनाया था। जो दुर्गा सप्तशती के नाम से विख्यात है। महाभारत काल मे बलराम ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी। यहां पर परम तपस्वी वक्र ऋषि का आश्रम था कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम बक्सर पड़ा था। यहां गंगा कुछ समय के लिए उत्तरमुखी प्रवाहित होने के कारण इस स्थान को काशी की तरह पवित्र माना जाता है। जिस स्थान पर मेधा ऋषि ने राजा सूरथ को दुर्गा सप्तशती सुनाई थी उसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के भाई बलराम ने भी माथा टेका था। वहीं पर मां चंडिका देवी की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यहां दो प्रतिमाएं मां चंडिका व अम्बिका की स्थापित हैं।
मार्कण्डेय पुराण व सप्तसती में मां चंडिका देवी का धाम शक्तिपीठों में वर्णित है। बक्सर स्थित मां के दरबार में पुण्य सलिला गंगा काशी की ही तरह उत्तर मुख होकर बहती हैं। बक्सर में वैदिक काल में राजा सुरथ व समाणि वैश्य को मेधा ऋषि ने ज्ञान प्रदान किया था। पौराणिक आख्यानों में कहा है कि विश्वामित्र ने भी मां के दरबार में तपस्या कर सप्तसती मंत्रों का सृजन किया। गायत्री मां का साक्षात्कार भी उन्हें यहीं हुआ। इस पवित्र शक्ति पीठ मेें राजा वसुमान, स्वामी सत्संगानंद, बक्कड बाबा जगदीशनंद, शिवानंद जैसे महपुरुषों ने तपस्या कर अनेक चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त की। जो आज भी लोगों में चर्चा का बिंदु रहती हैं। चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा फाह्यान ने भी अपनी यात्रा में मंदिर का उल्लेख किया है। बौद्ध धर्म के अनुयायी साधाराम ने भी इसी मनोरम स्थान पर अपना आश्रम बनाया।मार्कण्डेय पुराण व सप्तसती में मां चंडिका देवी का धाम शक्तिपीठों में वर्णित है। बक्सर स्थित मां के दरबार में पुण्य सलिला गंगा काशी की ही तरह उत्तर मुख होकर बहती हैं। बक्सर में वैदिक काल में राजा सुरथ व समाणि वैश्य को मेधा ऋषि ने ज्ञान प्रदान किया था। पौराणिक आख्यानों में कहा है कि विश्वामित्र ने भी मां के दरबार में तपस्या कर सप्तसती मंत्रों का सृजन किया। गायत्री मां का साक्षात्कार भी उन्हें यहीं हुआ। इस पवित्र शक्ति पीठ मेें राजा वसुमान, स्वामी सत्संगानंद, बक्कड बाबा जगदीशनंद, शिवानंद जैसे महपुरुषों ने तपस्या कर अनेक चमत्कारिक सिद्धियां प्राप्त की। जो आज भी लोगों में चर्चा का बिंदु रहती हैं। चीनी यात्री ह्वेनसांग तथा फाह्यान ने भी अपनी यात्रा में मंदिर का उल्लेख किया है। बौद्ध धर्म के अनुयायी साधाराम ने भी इसी मनोरम स्थान पर अपना आश्रम बनाया।
संत शोभन सरकार ने भी मंदिर की भव्यता प्रदान करने में अहम योगदान दिया।
मंदिर स्थल आगमन के लिए जनपद उन्नाव से 55 किमी की दूरी पर रायबरेली उन्नाव बॉर्डर गंगा नदी तट स्थित है। यहां आने उन्नाव से बस मैजिक और टेंपो मिल जायेंगी। बीघापुर से पहले लालकुआं से बक्सर के लिए रास्ता गया है । जहा टेंपो और किराए की सवारी गाड़ी मिल जायेगी । जो आपको आसानी से मंदिर स्थल तक ले जायेंगी।
बेहद प्राचीन पवित्र स्थल जाकर माता चंद्रिका और अंबिका के दर्शन अवश्य करें।
संकलन- अर्जुन तिवारी