Unnao News: धौरा कृषि विज्ञान केंद्र के सभागार में मंगलवार को गाजर घास जागरूकता सप्ताह के तहत किसानों को जागरूक किया गया। जिसमे आए हुए किसानों को गाजर घास के बारे में जानकारी दी और कहा गया की गाजर घास खतरनाक होती है उसे नष्ट कर देना चाहिए। केंद्र के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉक्टर जय कुमार यादव ने बताया कि गाजर खास यानी पार्थोनियम को देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नाम से नाम से जाना जाता है जैसे सफेद टोपी ,चटक चांदनी , गंधी बूटी आदि नामों से जाना जाता है भारत में 1956 में दृष्टिगोचर होने के बाद यह विदेशी खरपतवार लगभग 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुका है बताया कि खाली स्थानों, अनुपयोगी,भूमियों, औद्योगिक क्षेत्र बगीचों पार्कों स्कूल तथा अन्य स्थानों पर अधिक पाई जाती है गाजर घास का पौधा तीन से चार महीने में अपना जीवन चक्रपूरा कर लेता है,यह मुख्यता बीजों से फैलता है । यह एक विपुल बीज उत्पादक है और इसमें लगभग 5000 से 25000 बीज प्रति पौधा पैदा करने की क्षमता होती है । बीज अपने कम वजन के कारण हवा पानी और मानवीय गतिविधियों द्वारा आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच जाते हैं । गाजर घास को सबसे अधिक खतरनाक खरपतवारों में गिना जाता है क्योंकि यह मनुष्यों और पशुओं में त्वचा रोग, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके सेवन से पशुओं में अत्यधिक लार और दस्त के साथ मुंह में छाले हो जाते हैं। गाजर घास में फूल आने से पहले इस खरपतवार को उखाड़ कर कंपोस्ट या वर्मीकंपोस्ट बना लें। गाजर घास को विस्थापित करने के लिए चकोड़ा, गेंदा जैसे स्वा- स्थाई प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीच का छिड़काव करें।
कैसे करे बचाव
अकृषित क्षेत्रों में संपूर्ण वनस्पति नियंत्रण के लिए ग्लाईफोसेट (1.0- 1.5 प्रतिशत) जैसे शाकनाशी का छिड़काव करें और मिश्रित वनस्पति में पार्थेनियम के नियंत्रण हेतु मेट्रीब्यूजिन (0.3 से 0.5%) या 2,4 डी (1.0 से 1.5 प्रतिशत) का छिड़काव उसमें फूल आने से पहले करें ताकि घास कुल के पौधों को बचाया जा सके, जुलाई अगस्त महीने के दौरान गाजर घास संक्रमित क्षेत्रों में जैविक कीट जाइगोग्रामा बाईकोलोराटा को छोड़ सकते हैं ।जिससे गाजर घास नष्ट हो जाएगी, इस मुहिम में क्षेत्रीय केन्द्रीय एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन केंद्र, भारत सरकार के प्रभारी एवं संयुक्त निदेशक डॉ. ज्ञान प्रकाश सिंह, शैलेश कुमार, अमित कुमार वनसपति सरंक्षण अधिकारी सीआईपीएमसी लखनऊ, इंचार्ज कृषि विज्ञान केंद्र डा धीरज कुमार तिवारी, डा अर्चना सिंह, डा रत्ना सहाय, इंजी. रमेश चंद्र मौर्य, शांतनु सिंह, अनुभव सिंह एवम अन्य स्टाफ शामिल हुए।