लफंगों की पहली सफ़ में नाम है तेरा,
फिर भी दावा है कि तू खानदानी बहुत है।
बड़े शौक से रौंदते हो गरीबों के अरमान,
हुकूमत में तुम्हारी मनमानी बहुत है।
झूठ फरेब, छल प्रपंच, आरोप प्रत्यारोप,
सियासत में आजकल बदजुबानी बहुत है।
चोर मुट्ठीयां भींचे खड़े हैं चोरों के पहरेदारी में,
ईमानदारों पर यहां निगरानी बहुत है ।
उड़ गए नफरतों की आंधी में प्रेम और सौहार्द,
धर्म का मौसम भी तो तूफानी बहुत है ।
इस कदर से ना लो हमारी सब्र का इम्तिहान,
खामोश लब हैं मगर दिलों में सुनामी बहुत है।
इरादा कर लें यदि तुम्हें डुबोने का तो,
बस मजलूमों की आंखों का पानी बहुत है ।
लेखिका- अन्नपूर्णा ”अनु”












