Ballia News: जल शक्ति मंत्रालय ने भारत की पहली जल निकाय जनगणना की रिपोर्ट जारी की है, जो देश में तालाबों, टैंकों, झीलों और जलाशयों का एक व्यापक डेटा बेस है। जनगणना 2018-19 में आयोजित की गई थी, और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 2.4 मिलियन से अधिक जल निकायों की गणना की गई थी। जल निकायों की जनगणना का उद्देश्य सभी जल निकायों के आकार, स्थिति, अतिक्रमण की स्थिति, उपयोग, भंडारण क्षमता, भंडारण भरने की स्थिति आदि सहित विषय के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर जानकारी एकत्र करके एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित करना है। रिपोर्ट के अनुसार, देश में 24,24,540 जल निकायों की गणना की गई है, जिनमें से 97.1% (23,55,055) ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और केवल 2.9% (69,485) शहरी क्षेत्रों में हैं। 59.5% (14,42,993) जल निकाय तालाब हैं, इसके बाद टैंक (15.7%, यानी 3,81,805), जलाशय (12.1%, यानी 2,92,280), जल संरक्षण योजनाएं/रिसाव टैंक/चेक बांध (9.3%) हैं। यानी 2,26,217), झीलें (0.9% यानी 22,361) और अन्य (2.5% यानी 58,884) जल स्रोत हैं। मतलब वैश्वीकरण के इस दौर में भी अनुपम मिश्र जी के तालाब आज भी जल संसाधन के रूप में खरे हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार इन जल संसाधनों का अतिक्रमण एक गंभीर चुनौती है। लगभग 40,000 जल निकायों का अतिक्रमण किया गया। एक और रिपोर्ट के अनुसार जिन 38,496 जल निकायों के अतिक्रमण की सूचना है, उनमें से अधिकांश तालाब और उसके बाद टैंक हैं। 24,516 अतिक्रमित जल निकायों के आकलन से पता चला कि उनमें से 15,396 (62.1 प्रतिशत) में, 25 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक जल उपयोगकर्ता संघों (डब्ल्यूयूए) ने अतिक्रमण रोकने में काफी हद तक मदद की है. 13,64,349 जल निकायों में से जो व्यक्तिगत मालिकों के स्वामित्व में नहीं हैं, 3.1 प्रतिशत (42,237) जल निकायों के मामले में जल उपयोगकर्ता संघों (डब्ल्यूयूए) का गठन किया गया है।
उत्तर प्रदेश में जल स्रोतों की स्थिति
जल निकाय जनगणना की रिपोर्ट के अनुसार अधिकांश जल निकाय पश्चिम बंगाल में हैं, इसके बाद यूपी, आंध्र, ओडिशा और असम हैं। मोदी सरकार द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, जहां 1.6% पर अतिक्रमण कर लिया गया है, वहीं 16.3% ‘उपयोग में नहीं हैं’। उस अतिक्रमण को हटाना और जल स्रोतों को उपयोग में लाना शासन और प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी है। उत्तर प्रदेश राज्य जल नीति, 2020 के तहत उत्तर प्रदेश की जल निकायों (जैसे नदियाँ, झीलें, टैंक, तालाब आदि) और जल निकासी चैनलों (सिंचित क्षेत्र के साथ-साथ शहरी क्षेत्र जल निकासी) के अतिक्रमण और डायवर्जन की अनुमति नहीं दी जानी की बात कही गई है, और जहां भी यह हुआ है, इन स्रोतों को बहाल कर व्यवहार्य सीमा तक ठीक से बनाए रखने का प्रयास होना चाहिए। जो कि बलिया के प्रशासन और पुलिस के काम करने में दूर दूर तक दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में नागरिक समाज और समुदायों की जिम्मेदारी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है। खेती किसानी और पशुपालन से संबंध रखने वाले लोगों को छोटे-छोटे समूह बनाकर अपने जीविकपार्जन और जीविकापार्जन को सतत बनाये रखने हेतु उचित पर्यावरण को संतुलित बनाने हेतु स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
पुलिस प्रशासन की मदद से स्थानीय प्रयास को कुचलने का प्रयास
आज जनपद बलिया के भी बहुत ब्लॉक जल संकट की श्रेणी में है। इसलिए यहाँ सरकार की प्राथमिकता में जल संसाधनों का रख रखाव और प्रबंधन प्रमुख होना चाहिए। लेकिन स्थनीय प्रशासन इसके इतर जाकर काम करने की दिशा की ओर इशारा कर रहा है। जनपद के रेवती ब्लॉक का मामला अभी कुछ महीनों से चर्चा में है। ज्ञात हो की डुमरिया ग्राम पंचायत के लगभग नब्बे फीसदी से ज्यादा लोगों की आमदनी का साधन खेती और पशुपालन है। श्रेणी वार उनका संबंध पिछड़े और दलित समुदाय से है। लोग तालाब का इस्तेमाल अपने मवेशी (गाय और भैंस) को पानी पिलाने के लिए करते हैं। वैसे सरकारी दस्तवेज में इस ग्राम पंचायत में तीन तालाब दिखाये गए हैं। लेकिन एक मात्र उपयोग में है। और बाकी दो तालाब पहले से गाँव के गंदे पानी के संचयन का केंद्र बने हुए हैं।
आज स्थिति ये है कि गाँव के सुदूर पूरब छोर पर स्थित गाँव का एक मात्र तालाब क्रियाशील है। इसको क्रियाशील और सजीव बनाने में गाँव के पशु-पालक और चरवाहा समूह का योगदान है। आज गाँव का एक भू-माफिया उस तालाब पर कब्जा जमाने की फिराक में है। लेकिन सहतवार थाना प्रभारी उनकों सहयोग देते हुए नजर आ रहे हैं। डुमरिया ग्राम पंचायत का ये तालाब जो सदियों से जल संरक्षण का काम कर रहा है आज भू माफिया के कब्जे में है। दुखद बात तो ये है कि पुलिस कानून की रक्षा के लिए और गरीब, असहाय, निराश, व हताश लोगों को न्याय दिलाने के लिए बनी है। आज वो मूक दर्शक बन कर मामले की लीप-पोती कराने के लिए उत्सुक है। पशु-पालक और चरवाहा समाज पुलिस की प्रशासन की उदासीनता के कारण असहाय महसूस कर रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जिस तालाब पर आज दावेदारी हो रही है उत्तर प्रदेश सरकार भी गहरीकरण और सुंदरीकरण के नाम पर लाखों और करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। तो दूसरा मुद्दा ये उठता है कि अगर किसी की ये निजी संपत्ति है तो उस समय भू स्वामी ने अपनी आपत्ति पुलिस में क्यों नहीं जाहिर की। पिछली भाजपा की उत्तर प्रदेश सरकार (2017-22) ने गहरी कारण और सुंदरीकरण के नाम पर लाखों रुपए खर्च किया है। तो ये कैसे संभव हो पाया कि एक निजी संपति पर देश के सबसे बड़े राज्य की सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर दी। ये एक मात्र गाँव का वन क्षेत्र है जहाँ से लोगों को सांस लेने के लिए शुद्ध हवा मिलती है। ये तालाब कई दशकों तक वन विभाग के नियंत्रण में भी रहा है। उस समय भू-माफिया रूपी भू-स्वामी कहाँ और कौन सी कुम्भ-करणी निद्रा में सो रहे थे। वन विभाग के प्रयास से व गाँव के बुजुर्ग (स्व. कपिल चौधरी) के प्रयास इस तालाब का किनारा (भीटा) वन आच्छादित हुआ। आज ये जगह सरकारी और व्यक्तिगत प्रयास से किसानों और गायों के लिए आरामगाह, और प्याऊ का काम कर रही है। गाँव के एक भू माफिया की नजर गाँव के ताना-बाना, शांति और अमन पर पड़ गई है। दुख की बात ये है कि पुलिस प्रशासन की इस प्रकार की उदासीनता और मामले की लिपा-पोती कराने की उत्सुकता व भू-माफिया को सहयोग करके, गांव की खेती तथा पशुपालन को नष्ट करके देश की सभ्यता और संस्कृति को तहस नहस करने की ओर इशारा कर रही है।
(संकलन- मनोज कुमार यादव, सामाजिक कार्यकर्ता)