हाथरस(Hathras) की दुखद घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। सैकड़ों लोगों की मौत और हजारों के घायल होने का प्रमुख कारण प्रशासनिक लापरवाही और आपातकालीन सेवाओं की कमी थी। सत्संग के आयोजक की गलती स्पष्ट है, लेकिन सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी उससे कम नहीं है।
कोरोनाकाल के भयानक अनुभव के बाद भी आपातकालीन सेवाओं में सुधार नहीं किया गया। एम्बुलेंस की कमी, अस्पतालों में जगह और ऑक्सीजन की अनुपलब्धता से यह साफ होता है कि हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी खामियां हैं। सरकार का दायित्व होता है कि वह ऐसी व्यवस्थाओं को सुनिश्चित करे, जिससे किसी भी आपदा की स्थिति में नागरिकों को तुरंत और प्रभावी सहायता मिल सके।
अस्पतालों की सीमित क्षमता और तीन जिलों में इलाज कराने की मजबूरी यह दर्शाती है कि स्वास्थ्य सेवाओं में बुनियादी ढांचे की कमी है। अगर सरकार ने कोरोना महामारी से सीखा होता और व्यवस्थाओं में सुधार किया होता, तो शायद इस तरह की त्रासदी से बचा जा सकता था। ऐसे में, यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार की लापरवाही और योजनाओं की कमी ने इस घटना को और भयावह बना दिया।
हाथरस की घटना ने हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है:
जब व्यवस्था ढुलमुल हो और जिम्मेदारियां अनदेखी की जाएं, तो परिणाम क्या होता है। हाथरस की त्रासदी ने न केवल प्रशासन की पोल खोली, बल्कि सत्संग आयोजकों की भी। सत्संग के आयोजक ने सोचा कि पुण्य कमाने का सबसे आसान तरीका है भीड़ जुटाना, चाहे लोग भेड़ों की तरह बिछड़ जाएं। आयोजनकर्ताओं ने भीड़ जुटाने में जो उत्साह दिखाया, काश वही उत्साह सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रबंध में भी दिखाया होता। लेकिन नहीं, उनका तो उद्देश्य सिर्फ भीड़ में निहित चमत्कार दिखाना था, मानो अस्पताल और एम्बुलेंस भी उन्हीं के ‘दिव्य’ प्रवचनों से संचालित होते। सत्संग के नाम पर जिंदगी का यह सत्यानाश करने वालों को अब समझ आना चाहिए कि असली पुण्य लोगों की जान बचाने में है, न कि उन्हें अनदेखी की बलि चढ़ाने में।
वहीं प्रशासन की लापरवाही ने पापों का पहाड़ खड़ा कर दिया। एम्बुलेंस और ऑक्सीजन की कमी ने मानो यह साबित कर दिया कि हमारे स्वास्थ्य तंत्र की हालत किसी सत्संग से कम नहीं, जहाँ सिर्फ आस्था और चमत्कार पर भरोसा करना पड़ता है। सरकार ने फिर से दिखा दिया कि आपदा प्रबंधन में उनकी महारत सिर्फ कागजों तक सीमित है। अब सवाल उठता है कि अगली महामारी में कौन सा सत्संग हमें बचाएगा?
ऐसे बड़े आयोजनों और सत्संगों पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। हाल की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि पर्याप्त सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। भीड़ नियंत्रण और आपातकालीन सेवाओं का उचित प्रबंधन सुनिश्चित करना अनिवार्य है। सरकार को सत्संग आयोजकों पर सख्ती से निगरानी रखनी चाहिए और नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। हमें ऐसे आयोजनों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।
