सच के सतह पर बार बार ठोकर मारती जिन्दगी के गुजरे पल तन्हाई के आलम में जब याद आते हैं तब दिल भाव बिस्वाल होकर माजी के महकते लम्हों की तस्वीर उकेरने लगता है।चल चित्र के तरह सब कुछ दिखने लगता है।ख्वाबों के शानिध्य में कल को संवारने के लिए कदम कदम पर बेदम होती सांस को सम्हाल कर हसीन सपनों को तिलांजलि देते हुए परवरिश की पराकाष्ठा को पार करना मजबूरी हो जाती है?।कठोर तप अथक मेहनत दिन रात की भाग दौड़कर अपनों की खुशहाली के लिए सब कुछ करना नियति मान लिया जाता है। बिडम्बनाओ के बाज़ार में सम्भावनाओ का खरीद्दार बनकर जीवन के अनमोल छणों को तिजारती अन्दाज में समाज को समर्पित करना हर मां बाप का फर्ज कर्ज बनकर हमेशा टीसता है।वहीं स्वार्थ की चक्की में पीसता परमार्थ के प्रगतिशील आस्था का दर्द रह रह कर रिसता है।जीवन के अनमोल लम्हों को ब्यवस्था के परिपालन में ब्यवस्थित कर हर्षित मन से जिनके भविष्य को संवारने में समर्पित किया वहीं जब जिन्दगी की दोपहरी के कड़ी धूप में छांव की चाहत रखा तो पांव के नीचे से जमीन खिसक गई!मिथक बनकर रह गया हसीन ख्वाब !उतर गया नशा खत्म हो गया सारा रुआब!न जीवन का सवाल हल हो पाया! न अपने पास रह गया कोई जबाब!केवल बस रह गया दर्द का सैलाब! जिसका न कोई माप है! न कोई हिसाब!!
अजीब सा किस्सा है जिन्दगी का भी!!
कमबख्त पूरी जिन्दगी जीनी
पड़ती है एक दिन मरने के लिए?
भाग्य के नीति नीयन्ता ने ज़िन्दगी का हर लम्हा तन्हा रहने का एहसास दिलाकर शनै:शनै:जीवन के दूरगामी पथ पर अग्रसर होने का साहस तो देता है! मगर मनहूसीयत के जिस मुकाम पर पहुंचा का पश्चाताप का आंसू रुलाता है वह जीवन के आखरी सफर का जहर भरा परिदृश्य है!जो अदृश्य सत्ता के सम्मोहन में ही दुर्भाग्य के दो राहें से गुजर कर जिनको सारा जीवन सहारा दिया उन्हीं के सामने बे बस बे सहारा बनाकर चार कन्धों के सहारे प्रकृति के प्रभावशाली ब्यवस्था के आस्था में अग्नि देवता को समर्पित हो जाना नीयति बना दिया! जीवन लीला का अवसान चार कन्धों के एहसान का बोझ लिए फिर कभी वापस न आने के संकल्प साधना में समाहित होकर शून्य में विलीन हो जाना मजबूरी कर दिया!यही है जीवन का सच! मगर हकीकत को दर किनार कर इस भौतिक वाली युग में सब कुछ अपना मानकर सर्वस्व गंवाना मायावी लोक का प्रारब्ध बन गया है!कायनात के इन्तजाम कर्ता ने इसी लिए तो आखरी सफर में इन्सान को निशब्द कर दिया है।कुछ भी साथ नहीं गया कफ़न भी बेरहम लोगों ने उतार दिया नंगे बदन आया नंगे बदन वापसी कर दिया।
आसिफ खान राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत