जो भी मुँह उठाता है, कह देता है कि हमारा गौरवशाली इतिहास (History) नही पढ़ाया गया। हां नही पढ़ाया गया और न ही पढ़ाया जाएगा और न ही किसी देश में पढ़ाया जाता है, इतिहास सबके लिए नही है।
यह क्या तमाशा है कि जिसे देखो,उसे लगता है कि सभी बच्चों को उनके इतिहास की गलियों के किस्से पढ़ाए जाएँ,हिन्दू कहें,हमारा नही पढ़ाया,मुसलमान कहें,हमारा नही पढ़ाया,दलित कहें,हमारा नही पढ़ाया,आदिवासी कहें,हमारा नही पढ़ाया,उत्तरी कहें,हमारा नही पढ़ाया,सवर्ण कहें,हमारा नही पढ़ाया,दक्षिणी कहें,हमारा नही पढ़ाया,अरे किसका किसका इतिहास एक बच्चे को पढ़ा दिया जाए,बच्चे हैं या मेमोरी कार्ड,की सब उसमें भर दो ।
एक बात समझ लीजिए,इतिहास पढ़ाया या नही पढ़ाया से पहले, अगर घर में बच्चे मौजूद हैं, तो उनको एक नज़र देख लें । उनके स्कूल बैग,सिलेबस को देख लें,सब्जेक्ट और उनपर उनकी मेहनत को देख लें,यह तमाशों के चक्कर में बच्चे को गिनी पिग मत बनाए,की उसके जितना चाहे उतना प्रयोग कीजिये,बस मुँह उठाकर कह दिया कि हमे नही पढ़ाया गया,अरे पहले पढ़ना तो सीखिए की बच्चों के कंधे पर सिर्फ इतिहास नही है, भविष्य भी है।
एक बच्चा क्लास फाइव से क्लास टेंथ तक मान लीजिए,एक विषय इतिहास पढ़ता है, अब इन पांच सालों में उसे गणित,हिन्दी, इंग्लिश,विज्ञान,इकोनॉमिक्स,सिविक्स के साथ इतिहास भी पढ़ना है, आप उसे कितना पढ़ाइयेगा ।
टेंथ के बाद बच्चे को करियर चुनने होते हैं, तब वह खलिस विज्ञान,गणित,इकोनॉमिक्स, आर्ट्स में घुसता है, यदि इतिहास में रुचि हुई,तो वह विषय लेगा और गहन अध्ययन करेगा,अन्यथा नही,तो क्या हर बच्चे को ठूंस ठूंस कर इतिहास पढ़ाईयेगा,चाहे उसे इंजीनियरिंग करनी हो या चाहे मेडिकल ।
यह जो एनसीआरटी और एससीआरटी का इतिहास का सिलेबस है, उससे बेहतर आजतक बना नही पाए हैं बोर्ड्स,कितने कम में लगभग पूरे भारत के प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को उसमें छू लिया गया है । हाँ अगर कुछ छूट रहा तो वह इतिहास में नही कहीं और होगा, जैसे चन्द्रबरदाई की रचना आपको इतिहास में नही मिलेगी और आप कहेंगे,इसे नही पढ़ाया,जबकि यह हिंदी साहित्य में मौजूद है, इसका ज़िक्र है, इसपर सवाल हैं, अब आप इसे इतिहास की। पुस्तक मानिए,बाकी लोग साहित्यिक ही मानेंगे।
यह तो असम्भव है कि सबका,सम्पूर्ण इतिहास,सभी को,पढ़ाया जा सके । अभी मध्यकालीन इतिहास के कितने किस्से छूट जाते हैं । स्वतंत्रता संग्राम में लाखों सेनानियों के किस्से रह जाते हैं, मगर प्रैक्टिकल होकर सोचिए कि अगर हर एक को पढ़ाया जाने लगे,तो इस देश के सारे बच्चे इतिहास पढ़ने में ही मर खप जाएँगे,विज्ञान के शोध क्या ही कर पाएंगे।
हां पूरा इतिहास उन्हें पढ़ना चाहिए,जिन्हें रुचि है। जिनका करियर है या जिनकी आवश्यकता है । यह कहना ग़लत है कि यह हज पढ़ाया गया,अरे स्कूल में नही पढ़ाया गया तो क्या आप अपनी रुचि से पढ़ नही सकते थे । हम लोग तो दुनिया जहान के विषय पढ़ते हैं, पढ़िए आप भी,अपने घर पर खरीदकर किताबें रखिये,किसने मना किया है मगर जैसे ही आप इसे सबपर थोपने की कोशिश करते हैं, वैसे ही एक बड़ा गड्ढा खोदने लगते हैं, जिसमे भविष्य को गाड़ते हैं और भूत को ज़िन्दा करते हैं।
मेरा अभी भी मानना है कि बच्चों के सिलेबस हल्के हों,जब वह करियर चुने तो उन्हें उस फील्ड की बेहतरीन किताबें और शानदार सिलेबस मिले और जब वह इन सबसे बाहर निकले तो आसानी से उन्हें,उनकी रुचि की किताबें,बाज़ार में उपलब्ध हों,बस….
और जिन्हें यक़ीन न हो,वह एक बार इतिहास का ऐसा सिलेबस बनाकर देख लें,जिससे सबको संतुष्टि हो जाए,फिर उसे पढ़वाकर देख लें मगर बाज़ार में रहने केलिए यह तमाशे तो करने ही पड़ते हैं कि हमारा वैभवशाली इतिहास नही पढ़ाया गया,एक बार हमसे मेरे मित्र ने यही कहा था,हमने भी मुस्कुराकर कहा कि ठीक,कल से अपने बच्चे को रोज़ दो घण्टे मेरे पास भेज देना,उसे पूरा वैभवशाली इतिहास रोचक ढंग से पढ़ा देंगे,मगर देखिये,वह आजतक नही आया क्योंकि उसे स्पेस साइंस पढ़ना था।
…..लेखक– हाफिज किदवई