मेरे हम सफर ना सही हम ख्याल तो बन,
जवाब ना सही तू सवाल तो बन।
तेरे लिए कबूल सभी तोहमतें मुझे,
तू बस मेरे ऊपर लगा इल्ज़ाम तो बन।
काटी हैं हमने तनहा उदास रातें बहुत ,
तू उन गहरी काली रातों का चांद तो बन।
जो भी सज़ा मिले गुनाहे इश्क की कबूल है मुझे,
हंस के पहनूं मैं हथकड़ी तू कैद का फरमान तो बन।
मालूम है की रास्ते जुदा है तेरे मेरे मगर,
कभी तू भी मेरी गलियों का मेहमान तो बन।
खिल उठेंगी फिर कालिया इन डालियों पे ,
तू इस उजड़ी हुई बगिया का बागबान तो बन।
तेरी बेरुखी ये नजरअंदाज सलूक बहुत सितम करता है ,
कभी मुखातिब हो मुझसे , मेरी सुबहों की तू शाम तो बन।
हजारों ख्वाब,ख्वाहिशें मेरी अधूरी है तेरे बिन,
तेरे संग से जो पूरे हों तू वो अरमान तो बन।
किस कदर रुसवा किया है मुझे तेरे प्यार ने,
तू मेरी एक नई पहचान तो बन।
देवता बना के पूजा है तुम्हें मेरी चाहतों ने,
तू मेरे इश्क़ का चारो धाम तो बन।
प्रज्ञा पांडेय वापी गुजरात